आज टूट गया तो बच बच कर निकलते हो,
कल आईना था तो रुक-रुक कर देखते थे।
कभी तो ख्वाब था वो पा लिया है,
मगर जो खो गई, वो चीज़ क्या थी ।
— जावेद अख्तर
अब क्या इंतजार करे सितारों के बदलने का,
जब तुम नहीं बदले तो तकदीर क्या बदलेगी ।
इन सितारों से ऊपर कुछ तो है,
इन लकीरों से ऊपर कुछ तो है ।
इल्म तो है उन्हे सारी जहाँ का लेकिन,
लेकिन वो खुद कौन है, इसका उन्हे कुछ पता नहीं ।
बिक रहा है सामान इस दावे के साथ,
की हम तकदीर बदल सकते है ।
पर तकदीर बदलने वाले,
खुद तंग गलियों मे क्यूँ रहते है ।
अगर उपाय करने से कुछ होता,
तो इस देश का प्रधानमंत्री एक ज्योतिष ही होता ।
ज़िंदगी तो महज एक दरिया है,
बहते चलो बस यही एक जरिया है ।
और अब क्या बताऊँ किधर खो गया हूँ मैं,
जिधर चला कारवाँ, उधर हो गया हूँ मैं ।
हक़ीक़त हैं जमीं और ख्वाब है आसमान,
और दौड़ रहे है सभी उड़ने की फिराक में ।
रफ्तार ज़िंदगी की बढ़ गई है इस कदर,
वो भी भाग रहे है जिन्हे कही जाना नहीं ।
ज़िंदगी मुस्किल है या मुस्किल में है ज़िंदगी ,
कभी गुजर जाते है हम और कभी गुजर जाती है ज़िंदगी ।
नादान है जो कहते है तकदीर कुछ नहीं होती,
अरे मेहनत तो धूप में पत्थर तोड़ने वाले भी करते है ।
सोचा बहुत कुछ मैंने, और मिला बहुत हैं ।
जो था मगर किसी और का उसका गिला बहुत है ।
कुछ दर्द छुपाये मैंने उसका सिला बहुत है,
और गुजर रही है ज़िंदगी मगर हौसला बहुत है ।
फूटनोटेस
Astrology is always right, but astrologers are left and right.
The destination is fixed; no one can change, but it changes when you change.
Destiny – Tiny
Some are wise others are otherwise
खुद और खुदा पर हमेशा भरोसा बहुत है ।
— संदीप कोचर
सितारों से आगे जहाँ और भी हैं,
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं।
— अल्लामा इक़बाल
‘जाति हमारी आत्मा, प्राण हमारा नाम,
अलख हमारा इष्ट, गगन हमारा ग्राम’ |
— संत कबीर
वक़्त ऐसे ना दीजिए कि भीख लगे,
बाकी जो आपको ठीक लगे ।
फैसला जो कुछ भी हो, मंजूर होना चाहिए,
जंग हो या इश्क हो, भरपूर होना चाहिए।
— राहत इंदौरी
बेशक, उसी का दोष है, कहता नहीं ख़ामोश है,
तू आप कर ऐसी दवा बीमार हो अच्छा तेरा।
— इब्ने इंशा
कूचे को तेरे छोड़ कर, जोगी ही बन जाएं मगर,
जंगल तेरे, पर्वत तेरे, बस्ती तेरी, सहरा तेरा ।
— इब्ने इंशा
अंदाज़ अपना देखते हैं आइने में वो,
और ये भी देखते हैं कोई देखता न हो ।
— निज़ाम रामपुरी
न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा,
हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा ।
— राहत इंदौरी
शाख़ें रहीं तो फूल भी पत्ते भी आएँगे,
ये दिन अगर बुरे हैं तो अच्छे भी आएँगे ।
— मंजूर हाशमी
दिल कि वीरान सी गलियों में सितारे निकले,
तुझ में झांका तो कई रंग हमारे निकले ।
तुझ को सोचूँ तो ये दुनिया भी हसीं लगती है,
तेरे पहलू से बहारों के शुमारे निकले ।
सुब्ह की पहली किरन हो या हवा का झोंका,
ज़ुल्फ़ चेहरे से हटाई तो सितारे निकले ।
सुरमई शाम की दहलीज़ पे आ बैठे हैं,
वो नज़ारे जो तिरी दीद के मारे निकले ।
मौज दर मौज समुंदर में तलातुम उठ्ठा,
फिर सफ़ीने से कई लोग हमारे निकले ।
फिर जवानी ने कई ख़्वाब दिखाए मुझ को,
फिर मिरी रूह से उल्फ़त के शरारे निकले ।
— शाहरुख अबीर
और क्या आख़िर तुझे ऐ ज़िंदगानी चाहिए,
आरज़ू कल आग की थी आज पानी चाहिए ।
— मदन मोहन मिश्रा दानिश
नई नई आँखें हों तो हर मंज़र अच्छा लगता है,
कुछ दिन शहर में घूमे लेकिन अब घर अच्छा लगता है ।
मिलने-जुलने वालों में तो सब ही अपने जैसे हैं,
जिस से अब तक मिले नहीं वो अक्सर अच्छा लगता है ।
मेरे आँगन में आए या तेरे सर पर चोट लगे,
सन्नाटों में बोलने वाला पत्थर अच्छा लगता है।
चाहत हो या पूजा सब के अपने अपने साँचे हैं,
जो मौत में ढल जाए वो पैकर अच्छा लगता है।
हम ने भी सो कर देखा है नए पुराने शहरों में,
जैसा भी है अपने घर का बिस्तर अच्छा लगता है।
— निदा फ़ाज़ली
मिटा दे अपनी हस्ती को अगर कुछ मर्तबा चाहे,
कि दाना ख़ाक में मिल कर गुल-ओ-गुलज़ार होता है।
— मजरूह सुल्तानपुरी
हम वो कश्ती है जिसका कोई किनारा ना हुआ,
सभी के हो गए हम मगर कोई हमारा ना हुआ।
— अज्ञात
होके मायूस ना आँगन से उखाड़ो पौधे,
धूप बरसी है तो बरसात भी यही होगी।
— अज्ञात
धीमे कदमों पर यूँ मायूस न हो ऐ दोस्त,
कि पहाड़ कभी दौड़कर नहीं चढ़े जाते ।
— डॉ. अबरार मुल्तानी
हो के मायूस न यूँ शाम से ढलते रहिए,
ज़िंदगी भोर है सूरज से निकलते रहिए ।
— कुंवर बेचैन
मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर,
लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया ।
— मजरूह सुल्तानपुरी