बीती विभावरी जाग री।
अम्बर पनघट में डुबो रही,
तारा घट ऊषा नागरी।
खग कुल कुल-कुल सा बोल रहा,
किसलय का अंचल डोल रहा,
लो यह लतिका भी भर लाई
मधु मुकुल नवल रस गागरी।
अधरों में राग अमंद पिये,
अलकों में मलयज बंद किये
तू अब तक सोई है आली
आँखों में भरे विहाग री।
— जयशंकर प्रसाद
शब्द – अर्थ
विभावरी — रात्री
अम्बर पनघट — आकाश रूपी पनघट
ऊषा — प्रातः काल का समय
तारा घट — तारा रूपी घड़े
नागरी — स्त्री
खग कुल — पक्षियों का समूह
कुल-कुल — घड़े भरने कीआवाज
किसलय — कोंपले
लतिका — लता, बेल
मुकुल — अधखिला फूल
नवल — नया
गागरी — गगरी (छोटा कलश)
अधरों — होंठों
राग — लगाव, प्रेम रस भारतीय शास्त्रीय संगीत मे गाने का आधार विभिन्न राग होते है ।
अमंद — काम नहीं होने वाला, जो कभी मंद न हों
अलकों — केशों
मलयज —सुवासित पवन, सुगंधित वायु
आली — सखी
विहाग — एक राग का नाम जो रात्री के समय गाया जाता है ।