जिस ओर झुके हम मस्ती में, झुक जाए उधर अंबर भूतल,
आज़ाद वतन के वाशिन्दे, हर गीत हमारा है बादल।
विविध प्रांत हैं अपनी – अपनी भाषा के अभिमानी हम,
पर इस सब से पहले दुनिया वालों हिन्दुस्तानी हम ।
रहन-सहन में खान-पान में भिन्न भले ही हों कितने,
इस मिट्टी को देते आए, मिलजुल कर कुरबानी हम ।
हिमगिरि से सागर तक अपना, रंग-बिरंगा है आँचल,
आज़ाद वतन के वाशिन्दे, हर गीत हमारा है बादल।
राष्ट्र गगन में जातिवाद की चमक उठी भीषण कलिका,
दहक रही अंतर अंतर में भाषा की दाहक उल्का ।
घेर रही हमको वर्गों में वर्ण धर्म की दीवारें,
झांक रही है फूट चतुर्दिक, विग्रह का घूँघट सरका ।
आओ भेद मिटा दें सारा, राष्ट्र तरुण सब मिल अविचल,
आज़ाद वतन के वाशिन्दे, हर गीत हमारा है बादल।
सदियों से ग़ुज़रे लाखों तूफ़ान हमारे आगे से,
आज झुके कुछ टकराकर तो कल लगते फिर जागे से ।
तामिल से कश्मीर भले ही दूर दिखाई दे कितना,
पर हर प्रांत जुड़ा है अपना, अगणित कोमल धागों से ।
जिस ओर बढ़ाए पग हमने, हो गई उधर भू नव-मंगल,
आज़ाद वतन के वाशिन्दे, हर गीत हमारा है बादल।
गीत रचना – डा. कमल सत्यर्थी
स्वर – श्री उमाशंकर चंदोला
Jis Aur Jhuke Hum Masti Main | English Lyrics